Wednesday, 15 July 2015

तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है

           






तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है
ज़हर-सूली ने गाली-गोलियों ने 
हमारी जात पहचानी बहुत है
कबूतर इश्क का उतरे तो कैसे 
तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है
इरादा कर लिया गर ख़ुदकुशी का 
तो खुद की आखँ का पानी बहुत है
तुम्हारे दिल की मनमानी मेरी जाँ
हमारे दिल ने भी मानी बहुत है

महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है

महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है
उनकी आँखों से होकर दिल तक जाना
रस्ते में ये मैखाना तो पडता हैं
तुमको पाने की चाहत में ख़तम हुए
इश्क में इतना जुरमाना तो पड़ता हैं